जब तवक़्क़ो ही उठ गई ‘ग़ालिब’,
क्यूँ किसी का गिला करे कोई! – मिर्ज़ा ग़ालिब
Month: December 2018
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – सँभलने दे मुझे ऐ ना-उम्मीदी
सँभलने दे मुझे ऐ ना-उम्मीदी क्या क़यामत है
कि दामान-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाए है मुझ से! – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – कौन है जो नहीं है
कौन है जो नहीं है हाजत-मंद,,
किसकी हाजत रवा करे कोई! – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – कोई मेरे दिल से पूछे
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता! – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – मशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हें
मशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हें तनहा ना कर दे ‘ग़ालिब’;
रिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते हैं। – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – ये न थी हमारी क़िस्मत
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – थी ख़बर गर्म कि ‘ग़ालिब’
थी ख़बर गर्म कि ‘ग़ालिब’ के उड़ेंगे पुर्ज़े,
देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ! – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – बना कर फ़क़ीरों का हम
बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देख़ते हैं – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – दिले नादाँ तुझे हुआ क्या
दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – हम है मुश्ताक़ और वो
हम है मुश्ताक़ और वो बेज़ार
या इलाही ये माज़रा क्या है । – मिर्ज़ा ग़ालिब