मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ
गर मैं ने की थी तौबा साक़ी को क्या हुआ था – मिर्ज़ा ग़ालिब
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मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – न था कुछ तो खुदा
न था कुछ तो, खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता…। – मिर्ज़ा ग़ालिब