शहादत थी मेरी क़िस्मत में जो दी थी ये ख़ू मुझ को
जहाँ तलवार को देखा झुका देता था गर्दन को – मिर्ज़ा ग़ालिब
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मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – न लुटता दिन को तो
न लुटता दिन को तो कब रात को यूँ बेख़बर सोता
रहा खटका न चोरी का दुआ देता हूँ रहज़न को – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – की वफ़ा हम से तो
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
होती आई है कि अच्छों को बुरा कहते हैं – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – रहिए अब ऐसी जगह के
रहिए अब ऐसी जगह के जहां कोई न हो,
हम सुखन कोई न हो और हम ज़बां कोई न हो. – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – रोक लो गर
रोक लो गर ग़लत चले कोई,,
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई! – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – उन के देखे से जो
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – बस-कि दुश्वार है हर काम
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना,
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना…!! – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – जब *तवक़्क़ो ही उठ गई
जब *तवक़्क़ो ही उठ गई ‘ग़ालिब’,
क्यूँ किसी का गिला करे कोई! – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – क़ासिद के आते आते ख़त
क़ासिद के आते आते ख़त इक अौर लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – कब वो सुनता है कहानी
कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी – मिर्ज़ा ग़ालिब